Wednesday, December 2, 2015

            गठानें

अंगराइयों को सिसकियाँ दबोच लें,और
आँखें रुआंसी हो उठे,तो समझ लेना
दिल का कोई कोना टूटा है ,
कोई अपना सा रूठा बैठा है |

सूरज तो रोज़ निकलता है,
पर सुबह चमकती नहीं
फूल तो रंग-बिरंगे हैं,
पर बगिया महकती नहीं
शायद कुछ हमने कहा था, 
कुछ उसने सुना था ,
लग गयी अब कुछ गांठे हैं, 
जो सुलझती नहीं

रास्तों की दूरियाँ अब सिमटती नहीं
लम्हों की चुप्पियाँ अब गूंजती नहीं
गलतियां हुई है, उनसे भी ,हमसे भी
कुछ वो समझते नहीं, कुछ हम समझाते नहीं |

हर पन्ने पर जिंदगी नयी कहानी कहती है
पर पुराने सिक्को की खनक बरक़रार रहती है
कोई आता है, कोई चला जाता हैं
सांसे रूकती नहीं, जिंदगी थम जाती है
धूल लगे ज्ञान में भी दीमक लग जाते हैं
जैसे
देर तक लगी गठानें , या टूट जाती हैं ,
या रिश्ते तोड़ देती हैं|  

8 comments:

  1. शब्द उम्दा हैं, विचारों में संतुलन अपेक्षित है :) (y)

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  2. nice lines ..
    रास्तों की दूरियाँ अब सिमटती नहीं
    लम्हों की चुप्पियाँ अब गूंजती नहीं
    गलतियां हुई है, उनसे भी ,हमसे भी
    कुछ वो समझते नहीं, कुछ हम समझते नहीं |

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  4. ख़ामोशी में वो ताक़त कहाँ... मैंने तो लफ़्ज़ों को गाँठे सुलझाते देखा है...

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  6. Replies
    1. Received & replied! Deleting my earlier comment, because it has got my contact ID.

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