गठानें
अंगराइयों को सिसकियाँ दबोच लें,और
आँखें रुआंसी हो उठे,तो समझ लेना
दिल का कोई कोना टूटा है ,
कोई अपना सा रूठा बैठा है |
सूरज तो रोज़ निकलता है,
पर सुबह चमकती नहीं
पर सुबह चमकती नहीं
फूल तो रंग-बिरंगे हैं,
पर बगिया महकती नहीं
पर बगिया महकती नहीं
शायद कुछ हमने कहा था,
कुछ उसने सुना था ,
कुछ उसने सुना था ,
लग गयी अब कुछ गांठे हैं,
जो सुलझती नहीं
जो सुलझती नहीं
रास्तों की दूरियाँ अब सिमटती नहीं
लम्हों की चुप्पियाँ अब गूंजती नहीं
गलतियां हुई है, उनसे भी ,हमसे भी
कुछ वो समझते नहीं, कुछ हम समझाते नहीं |
हर पन्ने पर जिंदगी नयी कहानी कहती है
पर पुराने सिक्को की खनक बरक़रार रहती है
कोई आता है, कोई चला जाता हैं
सांसे रूकती नहीं, जिंदगी थम जाती है
धूल लगे ज्ञान में भी दीमक लग जाते हैं
जैसे
देर तक लगी गठानें , या टूट जाती हैं ,
या रिश्ते तोड़ देती हैं|
शब्द उम्दा हैं, विचारों में संतुलन अपेक्षित है :) (y)
ReplyDeleteबिल्कुल
ReplyDeletenice lines ..
ReplyDeleteरास्तों की दूरियाँ अब सिमटती नहीं
लम्हों की चुप्पियाँ अब गूंजती नहीं
गलतियां हुई है, उनसे भी ,हमसे भी
कुछ वो समझते नहीं, कुछ हम समझते नहीं |
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteख़ामोशी में वो ताक़त कहाँ... मैंने तो लफ़्ज़ों को गाँठे सुलझाते देखा है...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteI mailed u
ReplyDeleteReceived & replied! Deleting my earlier comment, because it has got my contact ID.
Delete