Thursday, December 31, 2015

जाड़ा कहाँ रहता है ?
नन्ही सी मिनी ने माँ से पूछा,
“माँ नहाया नहीं जाता
पानी ठंडा हो गया है,
फटे है गाल, कंबल हैं भाय
गाजर-मटर का मौसम हो गया है |
शाम को जल्दी ढल जाय
सुबह को देरी से आय,
माँ, ये सूरज को क्या हो गया है?”

माँ हँसी बेटी के मासूम सवालों पर,

समझाया
“बिटिया रानी ,जाड़ा आ गया !”

मायूस मिनी कुछ समझ ना पाई

भोली आवाज़ में कुछ तुतलायी ;
“ माँ जाड़ा आ गया है ?
माँ जाड़ा कहाँ रहता है ?
क्या है वो टंकी के अंदर ,
या मेरे गालों के उपर ,
मटर के मीठे दानों में ,
या छुपा कंबल के भीतर?
माँ , आखिर ये जाड़ा कहाँ रहता है?”

पल भर सोचा, फिर मैनें कहा,

“कोहरा भरी थी वो काली रात
फटी चादर में लिपटे थे हाथ,
बिन छत, बिन हीटर रजाई
ठिठुरता बदन , कपकँपाती अंगराई!
सड़क किनारे , पैर पसारे
जाड़ा वहीं रहता हैं,
हाँ ! जाड़ा वहीं रहता है ||

Friday, December 18, 2015

सपनों को दौलत की जरुरत नहीं होती,
मन में विश्वास हो तो हर मुकाम आसान हैं , यही बताती है 
हौसलों की उड़ान
नदियों के पार कई गाँव देखें हैं,
छोटी आँखों में कई ख्वाब देखे हैंl

रसोई में रोशनी नहीं,धुँआ हैं,
पानी के लिए नल नहीं;
दस मील दूर बस एक कुआँ हैंl
घर हैं छोटा सा,परिवार बड़ा हैं,
छह इंसान, पांच जानवर;
और ठन्डे पानी के लिए बस एक घड़ा हैं l

पीठ पर बस्ते नहीं,पर आँखों में सपने हैं,
चाहत तो पढ़ने की हैं;
पर जो भूख से बिलख रहे वो भी तो अपने हैंl
पेंसिल तो नहीं थी,पर एक भट्टी हैं,
रोशनी वाला बल्ब  बनाते हैं;
लकड़ियाँ नहीं,सुलग रहीं ज़िन्दगी हैंl


फिर भी मुस्कुराते चेहरे आभाव में जीकर दिखा दिए,
दुखों का भर सर पर था;
खुद रहे अनपढ़ ,पर मुझे  कुछ सिखा दिएi
“जीने के लिए बस अपनों का साथ काफी हैं”,
अभी तो उनके सपने हैं;
और हौसलों की उड़ान अभी बाकी हैंl

नदियों के पार कई गाँव देखें हैं,
छोटी आँखों में कई ख्वाब देखे हैंl






Wednesday, December 2, 2015

            गठानें

अंगराइयों को सिसकियाँ दबोच लें,और
आँखें रुआंसी हो उठे,तो समझ लेना
दिल का कोई कोना टूटा है ,
कोई अपना सा रूठा बैठा है |

सूरज तो रोज़ निकलता है,
पर सुबह चमकती नहीं
फूल तो रंग-बिरंगे हैं,
पर बगिया महकती नहीं
शायद कुछ हमने कहा था, 
कुछ उसने सुना था ,
लग गयी अब कुछ गांठे हैं, 
जो सुलझती नहीं

रास्तों की दूरियाँ अब सिमटती नहीं
लम्हों की चुप्पियाँ अब गूंजती नहीं
गलतियां हुई है, उनसे भी ,हमसे भी
कुछ वो समझते नहीं, कुछ हम समझाते नहीं |

हर पन्ने पर जिंदगी नयी कहानी कहती है
पर पुराने सिक्को की खनक बरक़रार रहती है
कोई आता है, कोई चला जाता हैं
सांसे रूकती नहीं, जिंदगी थम जाती है
धूल लगे ज्ञान में भी दीमक लग जाते हैं
जैसे
देर तक लगी गठानें , या टूट जाती हैं ,
या रिश्ते तोड़ देती हैं|